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ऋषि कपूर का अब हमारे बीच नहीं रहे। 67 साल की उम्र में निधन हो गया। गुरुवार सुबह मुंबई के एचएन रिलायंस फाउंडेशन में उन्होंने आखिरी सांस ली। इस बीच बॉलीवुड में ऋषि कपूर के साथ काम कर चुके दिग्गज कलाकारों ने अपनी श्रद्धांजलि शब्दों के रूप में साझा की। हर कोई उनके निधन से दुखी है।
देश की सबसे बड़ी आजादपुर मंडी में कोरोना संक्रमण थमने का नाम नहीं ले रहा। गुरुवार को यहां और 4 लोगों में कोरोना वायरस की पुष्टि हुई है। आधिकारिक तौर पर मंडी में अब तक 15 कारोबारी और मजदूर कोरोना संक्रमित पाए गए हैं। जबकि एक व्यापारी के मुताबिक 28 में कोरोना पॉजिटिव होने की जानकारी है। अभी तक 13 दुकानें सील कर दी गई हैं और 43 लोगों को क्वारेंटाइन किया गया है। इस बीच मंडी ने महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, नासिक से आने वाली सब्जियांे और फल की आवक में कमी में देखने को मिली है।
उत्तरी दिल्ली के डीएम दीपक शिंदे ने कहा है कि प्रशासन ने 116 टेस्ट मंडी के कारोबारी व मजदूरों के कराए हैं जिनकी रिपोर्ट अभी तक नहीं आई है। डीएम के मुताबिक, ये लोग सीधे तौर पर मंडी से नहीं जुड़े थे। मंडी में बड़े स्तर पर कोरोना वायरस को ध्यान में रखकर लोगों की जांच की गई है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से एक आदेश जारी कर मंडी में डॉक्टर और स्वास्थकर्मी की टीम को जांच के लिए मंडी में तैनात रहने का आदेश जारी किया गया है।
इसबीच, आजादपुर मंडी को लगातार सेनेटाइज किया जा रहा है। मंडी आने वाले सभी मजदूर, व्यापारी, ड्राइवर और किसानों को मास्क दिया जा रहा है, पूरी मंडी में सफाई अभियान चलाकर मंडी को रोजाना दो समय साफ किया जा रहा है और सभी को सेनिटाइज करने का काम रोजाना जारी है।
मंडी में कोरोना की जांच के लिए डॉक्टर्स की दो टीमें तैनात
दिल्ली सरकार ने मंडी में व्यापारियों के बीच भय को देखते जांच के लिए दो मेडिकल टीमों की तैनाती कर दी है। चार चार सदस्यों की टीम वहां लोगों की जांच करेगी। इससे पहले एग्रीकल्चरल प्रोडक्ट्स मार्केटिंग कमेटी आजादपुर ने केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव को पत्र लिखकर मंडी में दहशत की बात कही थी।
तीन केस मिलने पर कॉलोनी सील हो रहीं तो मंडी क्यों नहीं: विज
फल व्यापारी अशोक विज का कहना है कि कॉलोनी में कोरोना पॉजिटिव केस आता है तो कई गलियां तीन केस में बंद कर देते हैं। यहां मंडी में बड़ी संख्या में केस आ रहे हैं तो फिर इसे बंद क्यों नहीं करते। मंडी 14 दिन बंद करके सेनिटाइजेशन करनी चाहिए।
कोरोना संक्रमण के डर के कारण लोग मंडी नहीं आ रहे: फल व्यापारी
आजादपुर मंडी के फल व्यापारी अशोक विज(रिंकू) का कहना है कि 4 दिन बाद गुरुवार को अनार की गाड़ी आई थी। वो भी नहीं बिका। वो कहते हैं कि जब से मंडी में कोरोना पॉजिटिव केस निकला है तब से माल मंगाना कई आढ़तियों ने बंद कर दिया। अनार की कीमत अभी 200-650 पेटी जिसमें 7-9 किलो माल होता है। अंगूर करीब-करीब बंद है जो महाराष्ट्र से आता था। नासिक का जो अंगूर आ रहा है, वो बिक नहीं रहा है। सेब करीब-करीब खत्म हो रहा है।
रमजान के महीने में फ्रूट बिकता था लेकिन इस बार बिक्री कम है क्योंकि लोग पहले घर की बहुत जरूरी चीज खरीद रहे हैं, फल प्राथमिकता में नहीं है। अशोक विज बताते हैं कि डर के कारण व्यापारी व खरीददार मंडी नहीं आ रहे हैं। आलू-प्याज व्यापारी एसोसिएशन के राजेंद्र शर्मा कहते हैं कि नींबू और लहसुन नहीं आ रहा है। नींबू दक्षिण भारत से आ रहा था।
इधर, फल-सब्जियों की आवक के साथ ही खरीददारों की भी कमी
देश की सबसे बड़ी फल-सब्जी मंडी आजादपुर में कोरोना का कहर दिखने लगा है। ना सिर्फ आवक में 2000-3000 हजार टन तक फल-सब्जी की कमी आई है बल्कि खरीददार भी मंडी में घटे हैं। फल में अनार-अंगूर और सब्जी में नींबू-लहसुन ना के बराबर आ रहा है। कई तरह की सब्जी व फल आने के बाद बिक नहीं रहे हैं। गुरुवार को अनार 4 दिन बाद आया था लेकिन पूरा माल नहीं बिका। आलू-प्याज भी आवक कम होने के बावजूद बचा हुआ है।
आलू-प्याज व्यापारी एसोसिएशन के राजेंद्र शर्मा का कहना है कि आलू के 20 ट्रक और प्याज के 22 ट्रक आए जो पहले 25-27 ट्रक दोनों के आते थे। लॉकडाउन के पहले इनकी संख्या 70-90 ट्रक तक रहती थी। प्याज की कीमत में मामूली वृद्धि और आलू में 2-3 रुपए किलो की वृद्धि देखने को मिली है। इसबीच, हरी सब्जियों की कीमतों में इजाफा की खबरें हैं। कई जगहों पर सब्जियां ऊंचे दाम में बिके।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) पुराने मरीजों का फोन के जरिए इलाज कर रहा है। अभी तक ऑनलाइन अपॉइंटमेंट लेने वाले को ही इलाज मिल रहा था। प्रशासन ने मरीजों के लिए फोन के जरिए अपॉइंटमेंट लेने की सुविधा शुरू की है। ऐसे मरीज जिनका एम्स में इलाज चल रहा है और वह डॉक्टर से बात करना चाहते हैं वे 9115444155 पर फोन कर टेली कंसलटेशन के लिए अपॉइंटमेंट ले सकते हैं।
इधर, दो दिन में शुरू होगी सिर्फ बुजुर्गों के लिए हेल्पलाइन 1077
बुजुर्गों के लिए सरकार की हेल्पलाइन सेवा 1077 हाजिर रहेगी। डिप्टी कमिश्नर (मुख्यालय) को उचित इंतजाम करने होंगे, ताकि 24 घंटे में कभी भी बुजुर्ग हेल्पलाइन पर फोन करें तो उन्हें सहायता मिले। मुख्य सचिव विजय देव ने कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट ने एक आदेश दिया था कि दिल्ली सरकार ने बुजुर्गों के लिए हेल्पलाइन सुविधा शुरू नहीं की है, जबकि दिल्ली पुलिस ने कर दी है। सरकार ने अदालत को आश्वस्त किया था कि अगले दो दिनों में यह सुविधा शुरू कर दी जाएगी।
दिल्ली में अब कोरोना हॉटस्पॉट कंटेनमेंट जोन की संख्या 100 से घटकर 98 रह गई है। गुरुवार को कोई नया कंटेनमेंट जोन नहीं बना और पहले से बने पूर्वी दिल्ली के मयूर विहार फेस-एक स्थित वर्धमान अपार्टमेंट और दक्षिण पूर्वी दिल्ली के ईस्ट ऑफ कैलाश के ई ब्लॉक को डी-कंटेनमेंट जोन में तब्दील करके ग्रीन जोन बना दिया गया। वर्धमान अपार्टमेंट 2 अप्रैल कंटेनमेंट जोन में तब्दील किया गया था जिसमें 102 फ्लैट्स हैं।
यहां प्रशासन ने 213 लोगों को स्क्रीन या टेस्ट किया जिसमें सबकी रिपोर्ट निगेटिव आई। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने वर्धमान अपार्टमेंट में कोई नया केस नहीं आने और डि-कंटेनमेंट जोन बनाए जाने की जानकारी ट्वीट करके दी। तर्क दिया गया यहां भी ऑपरेशन शील्ड को सफलता मिली है। 16 अप्रैल को मरीज गुड़गांव के अस्पताल से डिस्चार्ज भी हो गया था लेकिन दिशा निर्देशों को पूरा करने के लिए 30 अप्रैल को यहां के अतिरिक्त बंधन को खत्म किया गया।
साउथ ईस्ट दिल्ली के ईस्ट ऑफ कैलाश के ई ब्लॉक में ई-284 से ई 294 तक कंटेनमेंट जोन 12 अप्रैल को बनाया गया था। यहां भी कोई नया केस नहीं आया जिसकी वजह से अब इस जोन को डि-कंटेनमेंट जोन बना दिया गया है। दिल्ली में सबसे पहले पूर्वी दिल्ली के मनसारा अपार्टमेंट को ग्रीन जोन में तब्दील किया गया था। अब दिल्ली में कंटेनमेंट जोन की संख्या 98 बची है।
(तोषी शर्मा)‘एन-95 मास्क नॉट अवेलेबल इन स्टोेर’। सफदरजंग अस्पताल में ऐसा ही नोटिस चस्पा है। कोरोना वायरस से सीधे जंग लड़ रहे कोरोना योद्धाओं को मास्क तक नसीब नहीं हो रहे हैं। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि धरती के भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर किन मुश्किल हालातों के बीच काम करने को मजबूर हैं। मास्क की कमी डॉक्टरों के लिए जान का खतरा होने के साथ-साथ सरकारी सिस्टम और कोरोना महामारी से निपटने के लिए की गई सरकारी तैयारियों की भी पोल खोल रही है।
सूत्रों के मुताबिक सफदरजंग अस्पताल में कोरोना संक्रमितों का इलाज कर रहे डॉक्टर एक ही पीपीई किट और मास्क को सात दिन तक पहनना पड़ रहा है। ऐसे में डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के कोरोना संक्रमित होने का खतरा लगातार बना हुआ है। अस्पताल के कई डॉक्टर और नर्सिंगकर्मी कोरोना की चपेट में आ चुके हैं। अस्पताल के मेडिसिन वार्ड के तीन डॉक्टर मंगलवार को ही कोरोना पॉजिटिव मिले हैं। उसी वार्ड के बाहर एन-95 मास्क नॉट अवेलेबल इन स्टोर का नोटिस चस्पा किया हुआ है। ताकि अलग-अलग शिफ्ट में आ रहे डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ मास्क की मांग न कर सकें।
कोविड-19 का इलाज कर रहे एक चिकित्सक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कोविड-19 के मरीजों का इलाज कर रहे चिकित्सकों को एक ही पीपीई किट और मास्क को मजबूरन एक सप्ताह तक इस्तेमाल करना पड़ रहा है। इसका विरोध करने और इस तरह की बात लीक करने पर उनके खिलाफ कार्रवाई की चेतावनी दी जाती है। इसके लिए बाकायदा इंटरनल आदेश भी जारी किए गए हैं।
सिंगल टाइम यूज पीपीई को लगातार पहनने से भी फैल रहा है संक्रमण
कोविड-19 वार्ड में पॉजिटिव मरीजों का इलाज के दौरान चिकित्सक मरीज की एडमिट फाइल में नोट डालता है। उस रजिस्टर को नर्सिंग स्टाफ उठाकर ले जाता है। उस फाइल को फिर से ऑनलाइन डाटा एंट्री के लिए डाटा ऑपरेटर ने यूज किया। फिर वही फाइल दोबारा मरीज के बेड पर पहुंच जाती है। ऐसे में कोरोना मरीज की फाइल डॉक्टर समेत कई लोगों के संपर्क में आई। ऐसे में संक्रमण का खतरा बढ़ रहा है।
दूसरा कारण डॉक्टर ओपीडी में जो मास्क पहनकर कई मरीजों को देखता है, उसमें से अगर कोई कोरोना संक्रमित होता है। और दूसरे मरीज के संपर्क में आता है तो उसमें संक्रमण फैलने का कारण बनता है। वहीं एक ही पीपीई किट को सात दिन तक पहनने से भी संक्रमण फैल रहा है। क्योंकि ये एयरटाइट होने के साथ ही सिंगल टाइम यूज है।
^अस्पताल में कोवि़ड-19 का इलाज कर रहे डॉक्टरों के लिए पीपीई किट और एन-95 मास्क की कमी होने की बात जानकारी में नहीं है। इस बारे में पता करवाता हूं, जो भी जिम्मेदार होगा उसके खिलाफ कार्रवाई और जिन उपकरणों की कमी है, उसको उपलब्ध करवाया जाएगा।
- दिनेश नारायन, पीआरओ, सफदरजंग अस्पताल
केंद्र सरकार की तरफ से दूसरे राज्यों में फंसे मजदूर और छात्रों को अपने राज्य आने के लिए जारी दिशा-निर्देश के बाद दिल्ली सरकार ने काम शुरू कर दिया है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर जानकारी दी है कि कोटा में फंसे छात्रों को जल्द दिल्ली वापस लाने की व्यवस्था सरकार कर रही है। तो वहीं स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा है कि गाइडलाइंस के हिसाब से दूसरे राज्यों के जो मजदूर दिल्ली में फंसे हुए हैं, उन्हें वापसी भेजने के लिए सरकार दूसरे संबंधित राज्यों से बातचीत कर रही है। जो के भेजने की प्रक्रिया है उसमें दिल्ली सरकार को मजदूरों के स्वास्थ्य जांच की स्क्रीनिंग करनी है और संबंधित राज्य उनके लिए ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था करेंगे।
आप विदेश में फंसे हैं तो ऑनलाइन फार्म भरकर दें जानकारी, दिल्ली सरकार ने लांच किया ऑनलाइन फार्म
दिल्ली सरकार ने विदेश में फंसे दिल्ली के निवासी या छात्रों की जानकारी जुटाने के लिए https://ift.tt/2yW9sj6 लिंक जारी किया है। अगर कोई दिल्ली का नागरिक विदेश में फंसा है तो वो खुद या परिवार का अन्य सदस्य इसकी जानकारी उस फार्म में भर सकता है।
जानिए... कौन-कौन सी जानकारियां करानी पड़ेगी उपलब्ध
फार्म में नाम, उम्र, अभी किस देश में हैं, उस देश के रिहायश का पता, वीजा किस टाइम का है और कब एक्सपॉयर होगा, विदेश क्यों गए थे, दिल्ली में क्या काम करते हैं, कोरोना या किसी अन्य बीमारी से अभी पीड़ित तो नहीं हैं। दिल्ली का रिहायशी पता, खुद का मोबाइल नंबर, ईमेल आईडी, दिल्ली में किसी का संपर्क है तो वो लिखें, पासपोर्ट नंबर और उसकी फोटो कॉपी अटैच करने के साथ ही 100 शब्दों में कोई रिमार्क लिखना चाहते हैं तो वो लिखकर जमा कर सकते हैं। फार्म भरने में किसी तरह की दिक्कत होने पर +919717999263 पर भारतीय समय के अनुसार सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक संपर्क कर सकते हैं।
अभी डेटा नहीं उपलब्ध
दिल्ली सरकार के एक अधिकारी का कहना है कि अभी दिल्ली के कितने लोग कोरोना बीमारी के कारण विदेशों में कहां-कहां फंसे हुए हैं, इसकी जानकारी नहीं है। फिर लोग खुद जानकारी भरेंगे तो उसके हिसाब से आगे कोई फैसला लिया जाएगा।
जुटाई जाएगी जानकारी
दिल्ली सरकार के एक अधिकारी ने बताया कि छात्र कोटा या अन्य जगह कहां कितने हैं, इसकी जानकारी भी जुटाई जाएगी। चूंकि कोटा में फंसे छात्रों को लेकर शिकायतें या गुहार पहले भी सोशल मीडिया पर आई हैं इसलिए सबसे पहले वहां के छात्रों को लाने की व्यवस्था होगी।
केंद्र सरकार का राम मनोहर लोहिया अस्पताल दिल्ली में कोरोना से मौतों का हॉट-स्पॉट बन गया है। राजधानी में कोरोना से अब तक हुईं 59 में से 26 मौत अकेले इस अस्पताल में हुई हैं। यहां ज्यादा मौतों का कारण अस्पताल पर सीरियस मरीजों का ज्यादा दबाव बताया जा रहा है। केंद्र सरकार ने भी यह बात मानी है कि अस्पताल पर सीरियस मरीजों का ज्यादा दबाव है।
दिल्ली में सबसे पहले राम मनोहर लोहिया अस्पताल में कोरोना संदिग्ध और पॉजिटिव मरीजों का इलाज होना शुरू हुआ था। केंद्र सरकार ने यहां आइसोलेशन वार्ड बनाया था। इसके बाद सफदरजंग, लेडी हार्डिंग, लोकनायक, राजीव गांधी आदि अस्पतालों में कोरोना के इलाज की व्यवस्था हुई। राम मनोहर लोहिया अस्पताल में कोरोना वार्ड तो है लेकिन इसकी क्षमता कम है। 50 से ज्यादा मरीज यहां कभी भर्ती नहीं रहे लेकिन यहां कोरोना मरीजों की मौत का आंकड़ा ज्यादा है। दिल्ली सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक, गुरुवार तक 59 मौतों में से अकेले इस अस्पताल में 26 मौत हुई हैं। अ
स्पताल प्रशासन का कहना है कि बहुत से मरीज बहुत क्रिटिकल कंडीशन में अस्पताल में आए इसलिए उन्हें बचाया नहीं जा सका। अस्पताल पर कोरोना के सीरियस मरीजों का ज्यादा दबाव होने की बात केंद्र सरकार ने भी मानी है। इसके चलते सरकार ने आरएमएल को यह अधिकार दिया है कि वह सीरियस मरीजों को सफदरजंग और लेडी हार्डिंग अस्पताल के लिए रेफर कर सकते हैं और इन अस्पतालों को वह मरीज लेना होगा।
बदलाव :अब तीनों अस्पतालों पर मरीजों का बराबर दबाव आएगा
केंद्र सरकार की ओर से जारी आदेश में कहा गया है ऐसा जानकारी में आया है कि लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज से जुड़े अस्पताल, सफदरजंग और लोकनायक से जैसे सीरियस मरीज या फिर कई बीमारियों से पीड़ित मरीजों को भर्ती करने से मना कर रहे हैं। थोड़ी बहुत ऑक्सीजन की जरूरत वाले मरीज को भी मना किया जा रहा है। इसकी वजह से राम मनोहर लोहिया अस्पताल पर सीरियस मरीजों के इलाज का ज्यादा दबाव होता है।
आदेश में कहा गया है कि आरएमएल तो 100 फीसदी संसाधनों का इस्तेमाल कर रहा है, जबकि अन्य अस्पताल सिर्फ 40-50 फीसदी। इसे ध्यान में रखते हुए सफदरजंग और लेडी हार्डिंग अस्पताल को सलाह दी जाती है कि वह आरएमएल की ओर से रेफर किए गए मरीजों को भर्ती कर उनका इलाज करें, ताकि तीनों अस्पतालों पर मरीजों का बराबर दबाव आए।
कोरोना के इलाज के लिए 2 और प्राइवेट अस्पतालों को मंजूरी
प्राइवेट अस्पतालों में कोरोना के मरीजों के लिए बिस्तरों की कमी के कारण दो और प्राइवेट अस्पतालों को कोरोना के लिए तय किया है। इसमें एक सर गंगाराम सिटी हॉस्पिटल (120 बिस्तर) और महा दुर्गा चैरिटेबल हॉस्पिटल (100 बिस्तर) को कोरोना इलाज के लिए तय किया है। इन दोनों प्राइवेट अस्पताल में एडमिशन लेने वालों को खर्च का भुगतान खुद ही करना होगा।
इधर, दिल्ली सरकार ने जारी किया आदेश :निजी अस्पताल या क्लीनिक में इलाज के लिए मना किया तो होगी कार्रवाई
इलाज के लिए मना करने वाले प्राइवेट अस्पताल और क्लीनिक की अब खैर नहीं। इस संबंध दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग की ओर से सख्त आदेश जारी किया गया है। इसमें कड़ी कार्रवाई करने की बात की गई है। इससे पहले सरकारी अस्पतालों के लिए भी यह आदेश निकल चुका है। सरकार की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि ऐसी जानकारी मिल रही है कि प्राइवेट अस्पताल और क्लीनिक लोगों का इलाज नहीं कर रहे। खासतौर पर डायलिसिस, ब्लड ट्रांसफ्यूजन, कीमोथैरेपी और प्रसव कराने में आनाकानी कर रहे हैं। इसके पीछे वह कोरोना संक्रमण होने को कारण बताते हैं।
आदेश में कहा गया है कि केंद्र सरकार की ओर से सख्त हिदायत है कि लॉकडाउन के समय जरूरी चीजों में हेल्थ सर्विस टॉप पर हैं। नॉन कोविड मरीजों को इस दौरान इलाज मिलने में दिक्कत नहीं आने चाहिए इसलिए यह संचालित रहें। मगर पता चल रहा है कि प्राइवेट अस्पताल इलाज के लिए मरीजों को मना कर रहे हैं और मरीजों को दिक्कत हो रही है। कुछ डॉक्टरों ने अपने क्लीनिक बंद भी कर रखे हैं। मगर अब इलाज के लिए मना करना और संस्थान अस्पताल या क्लीनिक चालू नहीं रहने की स्थिति में सख्त कार्रवाई की जाएगी।
अस्पतालों में कोरोना मरीजों की डेथ
अस्पताल | मौत |
अपोलो | 7 |
लोकनायक | 5 |
सफदरजंग | 4 |
एम्स | 2 |
राजीव गांधी | 2 |
मैक्स | 2 |
गंगाराम | 1 |
अन्य या घर | 10 |
अस्पताल में कोरोना मरीजों के लिए विशेष वार्ड भी है
^अस्पताल में कोरोना मरीजों के लिए विशेष वार्ड है। यहां आने वाले मरीजों के लिए इलाज के लिए डॉक्टर तय हैं। कई बार अस्पताल में आने वाले मरीज बहुत सीरियस होते हैं। डॉक्टर उनके इलाज में पूरी जान लगा देते हैं। मगर मरीज की स्थिति ऐसी होती है कि उस पर इलाज काम नहीं कर पाता। ऐसे में उसकी मौत हो जाती है।
स्मृति तिवारी, प्रवक्ता, आरएमएल
एक तरफ राज्य सरकार जहां प्रवासी लोगों को अपने घर पहुंचाने का काम कर रही है। वहीं दूसरी तरफ राजस्थान के जिले की सीमाओं पर लगे पुलिस नाके पर अपने घर जा रहे प्रवासी लोगों को बेवजह रोककर उन्हें परेशान करने का काम कर रहे हैं। ये राज्य सरकार के नियमों की अवहेलना कर रहे हैं।
पंजाब के तरनतारन जिले के कोटवाड़ा गांव निवासी जगरूप सिंह ने बताया कि वह गत दो-तीन माह से राजस्थान के बाड़मेर जिले में फसल कटाई के लिए गया हुआ था। लॉकडाउन के कारण वही फंस गया। काफी प्रयास के बाद वहां से घर वापसी के लिए शिव तहसील के तहसीलदार द्वारा घर वापसी के आदेश दिए और बस के लिए परमिशन भी दी।
वहां से बुधवार को रवाना हुए और गुरुवार सुबह जब अर्जुनसर पहुंचे तो जिले की सीमा पर श्रीगंगानगर जिले के राजियासर पुलिस ने यह कहकर रोक दिया कि आपको आगे नहीं जाने दिया जाएगा। हमारे पूछने पर उन्होंने यह कहकर यह रोक दिया कि पंजाब की सीमा पूरी तरह से सील की जा चुकी है। वहां किसी का प्रवेश नहीं होने दिया जा रहा है। इसलिए आपको वहां घुसने नहीं दिया जाएगा और आपको हमें श्रीगंगानगर में ही रखना पड़ेगा जो कि अब संभव नहीं है।
सूरतगढ़ उपखंड अधिकारी मनोज मीणा से बात करने पर उन्होंने यह कहकर टाल दिया कि आप राजियासर थाना अधिकारी से बात करें। राजियासर थाना अधिकारी सुरेश कुमार ने बताया कि पूर्व में पंजाब जाने वाली बसों को छूट दी गई थी। मगर पंजाब में उन्हें घुसने नहीं दिया गया और उन्हें श्रीगंगानगर में ही रखना पड़ा। चूंकि अब जिला प्रशासन से यह निर्देश आए हैं कि ऐसी बसों को जिले में भी प्रवेश नहीं दिया जाए इसी आधार पर इस बस को रोका गया है। बस में सवारी जगरूप सिंह ने बताया कि बस में कुल 33 सवारी है जिसमें 18 महिलाएं व 15 पुरुष और एक-दो बच्चे भी है।
सुबह बाड़मेर से 65000 रुपए में बस किराए पर करके लाए थे जिसका समय भी समाप्त होने वाला है। घर भी नहीं पहुंच पाएंगे और किराया भी बहुतलग जाएगा।
सूरतगढ़ एसडीएम आए मगर जाने नहीं दिया, अर्जुनसर में रुके हैं सभी मजदूर
मामला की जानकारी मिलने पर गुरुवार दोपहर बाद सूरतगढ़ एसडीएम मनोज मीणा, तहसीलदार रामस्वरूप मीणा व राजियासर एसएचओ सुरेश सियाग मौके पर पहुंचे। उन्होंने वहां जानकारी ली मगर किसी को भी अपने जिले से आगे जाने की अनुमति नहीं दी। कुछ देर रुकने के बाद अपने जिले के जवानों को उन्हें वहीं रोकने के आदेश देकर चले गए। सूचना मिलने पर कस्बे के युवा वहां पहुंचे। उन्होंने उन सभी श्रमिकों की मदद की। उनके खाने-पीने की व्यवस्था की।
एक्ट्रेस पूनम ढिल्लन ऋषि कपूर के साथ 'ये वादा रहा', 'सितमगर' और 'एक चादर मैली सी' जैसी कई बेहतरीन फिल्मों में काम कर चुकी हैं। प्रोफेशनल रिलेशनशिप के अलावा भी पूनम और ऋषि अच्छे दोस्त थे। एक्टर के निधन पर भास्कर के अमित कर्ण से बातचीत के दौरान पूनम ने उनसे जुड़ी कई खास बातें शेयर की हैं।
एक आखरी गुडबाय कहने का मौका भी नहीं मिला: सुबह उठते ही जब ऋषि जी का निधन होने की खबर सुनी तो समझ ही नहीं आया क्या रियेक्ट करू और किसीसे क्या कहूं? शायद शॉक शब्द से ज्यादा महसूस कर रही थी। उनके साथ मैंने तक़रीबन 8 से 9 फिल्में की थी और ना जाने हमारी कितनी यादें हैं। वो मेरे पसंदीदा एक्टर थे, मेरे फेवरेट को-स्टार थे, मैं उनकी बहुत बड़ी फैन थी। जिन्हे मैं एक्टिंग में अपना आइकन मानती थी वो हमसे दूर चले गए, इससे बड़ी दुःख की बात क्या हो सकती हैं? मुझे एक्टिंग बिलकुल नहीं आती थी, शूटिंग के दौरान ऋषिजी मेरी मदद करते थे। मैंने उनसे एक्टिंग सीखी थी। बहुत तकलीफ हो रही हैं ये सोचकर की मैं अपने फेवरेट व्यक्ति को आखरी बार देख भी नहीं पा रही हूं। लॉकडाउन की वजह से हम उन्हें श्रद्धांजलि भी नहीं देने जा सकते हैं। एक आखरी गुडबाय कहने का मौका भी नहीं मिला, दिल बहुत भारी हैं।
उन्हें डांटने की आदत भी थी: कुछ महीने पहले मुंबई के सेंत रेगिस होटल में हम एक कॉमन फ्रेंड की पार्टी में मिले थे। हमेशा की तरह खुश मिजाज थे, वैसे भी आप उनसे जब भी मिलेंगे वे खुश मिजाज ही नजर आते हैं (मुस्कुराते हुए)। मैं उनसे जब भी मिलती हूं उनके साथ एक तस्वीर जरूर लेती और मैंने अपनी आखिरी तस्वीर उनके साथ उसी पार्टी में ली थी। मैं अक्सर अपनी ली हुई पिक्चर उन्हें भेजा भी करती थी जिसे देखकर वे भी बहुत खुश होते थे। उन्हें ज्यादा तस्वीर लेने का शौक नहीं लेकिन जब देखते हैं तो काफी खुश होते हैं। कई बार तो मज़ाक भी करते थे मुझसे की मैं उनकी कितनी फोटोज लेती हूं। उन्हें डांटने की आदत भी थी लेकिन जिस अंदाज़ से वो डांटते थे उससे किसी को तकलीफ नहीं होती थी। एक अलग ही सेंस ऑफ ह्यूमर होता था।
ऋषि जी बनावटी नहीं थे, उनके जहन में जो बात आती थी वो कह देते थे: ऋषि जी अपने दिल में कोई बात दबा के नहीं रखते थे, उनके दिल में जो रहता वो उनके ज़ुबान तक आ ही जाता था। मैंने उनके साथ बहुत काम किया हैं और मैं जानती हूं की वे दिखावा कभी नहीं करते थे। इस उम्र में भी उनका इतना सोशली एक्टिव रहना काफी अच्छा लगता था। मैं कई बार उनसे कहां करती थी की 'क्या क्या लिखते है आप अपने ट्विटर अकाउंट पर? कुछ भी लिख देते हो।' इस पर उनका बस एक ही जवाब आता 'मैं ओनेस्ट हूं और मुझे अपना ओनेस्ट ओपिनियन लोगों के सामने रखना अच्छा लगता हैं। ऋषि जी पहले से बनावटी नहीं थे, उनके जहन में जो बात आती थी वो कह देते थे। इंडस्ट्री में उनकी इस नेचर की लोग काफी सराहना करते हैं। अपने यंगर डेज से वे बेबाक रहे हैं और जैसे जैसे बूढ़े होते गए उन्हें और आजादी मिल गई। जब सोशल मीडिया नहीं हुआ करता था तब उनके आस पास वाले ही उनका ओपिनियन सुन पाते थे लेकिन अब सोशल मीडिया की वजह से उनका सरकास्टिक टोन और सेंस ऑफ ह्यूमर सभी तक पहुंच जाते थे। बहुत ही शानदार और खुश मिजाज थे ऋषि जी।
ऋषि कपूर ने अपने एक्टिंग करियर के दौरान कई सारी बेहतरीन फिल्में दी हैं। एक्टिंग सिर्फ उनका काम ही नहीं बल्कि उनका जुनून था। फिल्म '102 नोट आउट' और 'ऑल इज वेल' में ऋषि का निर्देशन कर चुके डायरेक्टर उमेश शुक्लाने बताया कि आखिरी फिल्म के दौरान उन्होंने सीन को रियलइस्टिक दिखाने के लिए चप्पल पहनना तक छोड़ दी थी। इसके अलावा भास्कर के अमित कर्ण को दिए इंटरव्यू में उन्होंने ऋषि के साथ काम करने के एक्सपीरिएंस को भी शेयर किया है।
मां को खोने पर भी बांधा रखा हौंसला
उनमें कमाल का धैर्य था। तभी कैंसर और ट्रीटमेंट का फेज वह निकाल सके। उनके लिए वो टाइम टफ था। वह इसलिए कि उनकी माता जी का भी देहांत उसी दौरान हुआ था, जब उनका इलाज चल रहा था। मां सबके लिए मां ही होती है। वह खोना कितना मुश्किल होता है। फिर भी उन्होंने वापसी की। दोबारा अपने कर्म के मैदान में उतरे।
ऐसी थी डायरेक्टर से ऋषि की पहली मुलाकात
वैसे हमारी पहली मुलाकात उनके घर पर हुई थी। कृष्णा राज बंगलो में मीटिंग तय हुई थी। मैंने ऑल इज वेल उनको नरेट की थी। वह बहुत स्ट्रेटफारवर्ड इंसान थे। उन्होंने पहली ही मीटिंग में स्क्रिप्ट को हां कह दिया था। फिर हम लोग शिमला गए थे। एक महीने वहां शूट किया था। हम लोगों ने काफी वक्त साथ बिताया था। एक ही होटल में थे हम लोग।
एक फिल्म फ्लॉप होने के बाद भी दिया मौका
वह फिल्म भले बॉक्स ऑफिस पर नहीं चली, लेकिन इससे उन पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा। उन्होंने उस फिल्म की बदौलत मुझे नहीं आंका कि मैं अच्छा या बुरा डायरेक्टर हूं। दोबारा जब मैं 102 नॉट आउट लेकर गया तो उन्होंने बिल्कुल नए सिरे से उस स्क्रिप्ट को सुना।
हर काम की रखते थे खबर
उनको सिर्फ एक्टिंग का ही चार्म नहीं था, बल्कि और भी जो बाकी संबंधित चीजें होती थी कॉस्टयूम, लाइटिंग उन सब के बारे में भी वह बहुत गहन जानकारी रखते थे। मिसाल के तौर पर इस फिल्म में भी बुजुर्ग वाले रोल में उन्हें पिछली फिल्म का अनुभव काम आया और वह इनपुट उन्होंने हमें प्रोवाइड किया। वह पिछली फिल्म कपूर एंड संस थी।
प्रोस्थेटिक मेकअप में लगते थे चार घंटे
उसमें मेकअप में उन्हें चार-साढे चार घंटे लगते थे, मगर उसकी बेसिक जानकारी होने से हमारी फिल्म पर इतना वक्त नहीं लगता था। यहां उनका मेकअप 3 घंटे में हो जाया करता था। उन्होंने काफी बारीकी से उस चीज को समझा था और इनपुट दिए थे। यहां तक कि कॉस्टयूम में भी उन्होंने काफी सजेशन दिए थे कि वह किस तरह के शर्ट पहनेंगे। पूरी फिल्म में उन्होंने, थोड़े स्टार्च वाले शर्ट पहने।
अपने कैरेक्टर पर किया था रिसर्च
वो पहली बार गुजराती शख्स का रोल प्ले कर रहे थे। तो उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। अपने गुजराती दोस्तों और दूर के रिश्तेदारों से भी काफी पूछ कर गुजराती शख्स के लोगों के मैनरिज्म पर होमवर्क और रिसर्च किया। उस उम्र में भी उनका जुनून देखकर हम लोगों को प्रेरणा मिलती थी। वह इन सब चीजों पर तो काफी रिसर्च करते थे, लेकिन जब डायलॉग डिलीवरी और सीन शूट करने की बारी आती थी तो वहां पर वह स्पॉन्टेनियस रहते थे। नेचुरल फ्लोर दिखाने में यकीन रखते थे। मेथड में ज्यादा नहीं घुसते थे।
27 साल बाद बनी थी अमिताभ-ऋषि की जोड़ी
वह और बच्चन साहब 27 सालों के बाद दोबारा इस फिल्म पर काम कर रहे थे। लेकिन लगा ही नहीं कि इतने लंबे समय के अंतराल के बाद दोनों फिर से मिले हैं और काम कर रहे हैं। ऐसा लग रहा था जैसे दोनों कल के ही मिले हुए हैं और दोबारा से सेट पर काम कर रहे थे। इस तरह की गहरी बॉन्डिंग दोनों के बीच दिख रही थी
छोड़ दियाथाचप्पल पहनना
दोनों ही डायरेक्टर्स एक्टर हैं। हमने जब उन्हें कहा कि हम लोग घर में चप्पल नहीं पहनते तो यकीन मानिए कि उन लोगों ने चप्पल पहनना तक छोड़ दिया शूटिंग के दौरान। भले उनका क्लोज शॉट होता था, मिड शॉट होता था या लॉन्ग शॉट में जब वह आ रहे होते थे। क्लोज शॉट में जरूरत नहीं थी कि वह चप्पल ना पहनें, मगर ऋषि कपूर जी इतने बारीक ऑब्जर्वर थे कि उनका कहना था कि अगर वह बिना चप्पल के ना रहे तो उनकी वॉक में चेंज आ जाएगा, इसलिए उन्होंने पूरे अनुशासित भाव से उस चीज का पालन किया।
कोरोना संक्रमण के बढ़ते दायरे का असर अब लोगों की थाली पर भी नजर आ सकता है। दरअसल आजादपुर मंडी में कोरोना के संक्रमण के मामले आने के बाद कारोबारियों की एसोसिएशन ने सोमवार से बंद का आह्वान किया है। इसके चलते मंडी में 50 प्रतिशत से ज्यादा कारोबारियों ने काम बंद कर दिया है। कारोबारी न तो माल ला रहे है और ना ही काम कर रहे हैं। यही कारण है कि मंडी में बुधवार को 5 हजार टन ही आवक रही है। जबकि आम दिनों में मंडी में 7 से 8 हजार टन की आवक रहती है।
आजादपुर मंडी के आढ़ती राजीव कुमार ने बताया कि रविवार को कारोबारियों ने माल की गाड़ियां बुलाई थीं। तीन दिन से कारोबारी स्टॉक का माल बेच रहे हैं। कई कारोबारियों ने काम बंद कर दिया है। ऐसे में स्टॉक का माल खत्म होने पर सब्जी और फल दोनों के दाम में तेजी आएगी। इसका असर एक दो दिन में दिखने को मिलेगा। आजादपुरी मंडी के सेब के कारोबारी विजय कुमार ने बताया कि फल की आवक भी 50 प्रतिशत कम हो गई है। इसका कारण कोरोना की दहशत में कारोबारी और खरीदार दोनों ही मंडी में नहीं जा रहे है। ऐसे में साफ है कि दो से तीन दिन में फलों के दाम बाजार में बढ़ेंगे। एक कारोबारी ने बताया कि अभी शहर के सभी होलट, रेस्टारेंट और छोटी खाने पीने की दुकानें बंद है। ऐसे में मंडी में स्टॉक माॅल की खपत आम दिनों के समान नहीं है।
मंडी से जुड़े तीन और कारोबारी कोरोना पॉजिटिव, अब तक 15 कारोबारी पॉजिटिव पाए गए
आजादपुर मंडी में कोरोना का संक्रमण तेजी से फैलता जा रहा है। बुधवार को आजादपुर मंडी से जुड़े तीन और कारोबारी की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। जिसके साथ ही कोरोना पॉजिटिव की संख्या बढ़कर 15 हो गई है। तीनों कारोबार अलग-अलग इलाके पीतमपुरा, रोहिणी और आदर्श नगर में रहते थे। मंडी प्रशासन ने तीनों की दुकानों को सेनिटाइज कर सील कर दिया है। वहीं, इनके संपर्क में आने वाले लोगों और रिश्तदारों को क्वारंटीन होने के लिए कह दिया गया है।
इससे पहले मंगलवार को एक अन्य आदर्श नगर निवासी सब्जी के कारोबार से जुड़े कारोबारी की रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। उसकी पत्नी की भी रिपोर्ट पाजिटिव आई थी। सोमवार को 11 कारोबारियों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। बता दें मंडी से जुड़े कारोबारी संक्रमितों की संख्या 25 से ज्यादा होने की बात कर रहे हैं। वहीं, उनका कहना है कि मजदूरों का अभी कोई टेस्ट नहीं हुआ है। इस पर मंडी प्रशासन का कहना है कि हमारे पास 15 कारोबारियों की रिपोर्ट ही पॉजिटिव आई है। जानकारी के अनुसार मंडी में 50 लोगों के सैंपल लिए गए थे, जिनकी रिपोर्ट गुरुवार या शुक्रवार के दिन आ सकती है। ऐसे में आशंका है कि मंडी में कोरोना पॉजिटिव की संख्या में इजाफा होगा।
एपीएमसी बोली- अभी मांग के अनुसार सब्जी और फल मौजूद हैं
एपीएमसी के चेयरमैन आदिल अहमद खान ने बताया कि लॉकडाउन से व्यापार प्रभावित हुआ है। बुधवार को 5000 टन आवक रही। हालांकि वर्तमान में मांग के अनुपात में सब्ज़ियां और फल उपलब्ध हैं। मंडी के अंदर सब्ज़ी और फल के दाम सामान्य रहे। किसी तरह की कोई बढ़ोतरी नही दर्ज की गई है।
सोनीपत से सब्जियों की सप्लाई रुकी, राजस्थान से आ रही हरी सब्जियां
हरियाणा के सोनीपत से दिल्ली की आजादपुर मंडी में हरी सब्जी की सप्लाई होती थी। हरियाणा सरकार ने दिल्ली में सब्जी बेचने पर रोक लगा दी है। जिससे सोनीपत से भिंडी, करेला, तोरी, लौकी, खीरा की सप्लाई रूक गई है। हालांकि मंडी प्रबंधक की तरफ से बताया गया कि हरी सब्जी राजस्थान से आती है, जो अभी आ रही है।
दिल्ली के साथ हरियाणा और यूपी के जिन जिलों की सीमाएं लगती हैं, एक-एक कर वे दिल्ली बॉर्डर को सील कर रहे हैं। मंगलवार को फरीदाबाद बॉर्डर और सोनीपत से जुड़े दिल्ली बॉर्डर पर सख्ती कर दी गई थी बुधवार को सोनीपत, गुड़गांव और फरीदाबाद जिला प्रशासन ने कुछ छूट के साथ लोगों के आवागमन पर पूरी तरह रोक लगा दी। फरीदाबाद के जिलाधीश यशपाल यादव की ओर से जारी आदेश में कहा गया कि बुधवार दोपहर 12 से कुछ लोगों को छूट के साथ अन्य सभी तरह के लोगों की एंट्री बैन रहेगी।
विभिन्न सरकारी विभागों के प्रमुखों और लोकल प्रशासन द्वारा जारी किए गए पास भी सस्पेंड कर दिए गए। अब तीन मई तक किसी भी तरह की छूट मिलने वाली नहीं है। गाजियाबाद और नोएडा पहले ही अपने बॉर्डर सील कर चुके हैं।
खास बात यह कि बॉर्डर सील कर देने से वे डॉक्टर भी प्रभावित हुए हैं जो आवयश्यक सेवा के तहत ड्यूटी करने दिल्ली आते हैं। एनसीआर से दिल्ली के अस्पतालों में काम करने के लिए आने वाले डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। सबसे ज्यादा दिक्कत हरियाणा के बॉर्डरों पर है।
सफदरजंग अस्पताल में बहुत से डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ इन इलाकों से आता हैं। बॉर्डर पर इनसे कहा जा रहा है कि दिल्ली में ही रहने का इंतजाम करिए। सफदरजंग अस्पताल की रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ने मेडिकल सुप्रीटेंडेंट को चिट्ठी लिखकर समस्या का समाधान करने की मांग की है। आरडीए के उपाध्यक्ष डॉ. आशू मीणा ने कहा कि हमने अस्पताल के मेडिकल सुप्रीटेंडेंड से कहा है कि बड़ी तादाद में डॉक्टर और अन्य मेडिकल स्टाफ एनसीआर के इलाकों से अस्पताल में नौकरी करने के लिए आता है। इस समस्या का समाधान कराया जाए।
फोर्डा ने डॉ. हर्षवर्धन और सीएम केजरीवाल को भी लिखा पत्र
फेडरेशन ऑफ रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (फोर्डा) ने गृह मंत्री अमित शाह को चिट्ठी लिखकर मेडिकल स्टाफ को आने-जाने की छूट देने की अपील की है। फोर्डा के अध्यक्ष शिवाजी देव बर्मन ने कहा कि ऐसे वक्त में जब कोरोना संकट बना हुआ है। कोरोना के अलावा दूसरी बीमारियों का इलाज करने वाले डॉक्टरों की बहुत जरूरत है। आने-जाने की परेशानी से अस्पतालों में बहुत दिक्कत होगी। फोर्डा ने यह चिट्ठी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी भेजी है।
साउथ एमसीडी: कर्मचारियों के रहने-खाने का करेगा भुगतान
साउथ एमसीडी यूपी-हरियाणा इन राज्यों से डयूटी पर आने वालों प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान करेगी। इस संबंध में एमसीडी की ओर से आदेश जारी किया गया है। ए और बी कैटेगिरी के कर्मचारियों को दो हजार और सी एवं डी कैटेगिरी के कर्मचारियों को 1100 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान होगा। यह भुगतान उन्हीं कर्मचारियों को किया जाएगा जिन्होंने अपना पता यूपी या फिर हरियाणा दे रखा है। सुविधा लेने के लिए कर्मचारियों को अपने डिप्टी कमिश्नर से अप्रूवल लेनी होगी।
क्या बोले पीड़ित
जब मैं अस्पताल से डयूटी करने के बाद वापस अपने घर फरीदाबाद जा रहा था तो मुझे बदरपुर बॉर्डर पर रोका गया और वहां मौजूद पुलिसकर्मी ने दोबारा नहीं जाने देने की बात कही। मुझसे कहा गया कि दिल्ली में काम करते तो वहीं रहने का इंतजाम करो। इसके बाद मैंने अपने एचओडी को बताया। अस्पताल की ओर से कोई इंतजाम नहीं हुआ। मुझे यहां अस्पताल के हॉस्टल में अपने एक साथी के साथ रहना पड़ रहा है। इसका समाधान जरूर निकलना चाहिए।
-डॉ. लेखराज, रेडियोलॉजी, सफदरजंग
मैं रोज फरीदाबाद से नौकरी करने के लिए अस्पताल आता हूं। सुबह जब मैं अस्पताल आ रहा था तो मुझे कहा गया कि चले जाओ लेकिन वापस मत आना। आई कार्ड और अस्पताल की ओर से जारी पास दिखाने पर भी कोई सुनने को तैयार नहीं है। अस्पताल पहुंचने में देर होगी तो पहले से तय ऑपरेशन में परेशानी होगी। सरकार समस्या को कुछ न कुछ निकाले ताकि हमें परेशानी न हो। -डॉ संदीप तोमर, एनेस्थिसिया, सफदरजंग
क्या इंसान और क्या जानवर। कोरोना के कहर ने किसी को नहीं छोड़ा है। हर किसी का हाल बेहाल है। कोरोना की कमर तोड़ने को लागू ‘महाबंद’ से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में करोड़ों रुपये का ‘घोड़ी-बघ्घी’ कारोबार चौपट हो गया है। इस काम से जुड़े कारोबारियों के सामने दो जून की रोटी के ही लाले तो पड़े हैं। इनसे जुड़े बेजुवान घोड़ा-घोड़ी भी भुखमरी के कगार पर हैं। इसकी वजह वही कि, जिन शादी-बारात के चंद दिनों में इन सबकी कमाई होती थी। वे शादी-ब्याह की रौनकें इस बार कोरोना के कोहराम में भेंट चढ़ गईं
। दिल्ली रेहड़ा तांगा एसोसिएशन के खजांची पवन सिंधी हीरानंद घोड़ीवाला ने बताया कि जो मौजूदा हालात अचानक बदले हैं या सामने खड़े हैं उनमें, जब साहब जिंदगी रहेगी, तभी तो बाकी बची जिंदगी की गुजर-बसर की सोचेंगे। फिलहाल तो अपनी, अपने परिवार की जिंदगी के साथ साथ दरवाजे पर बंधे खड़े बेजुबान ‘घोड़ा-घोड़ी’ की जिंदगी बचाने के लिए भी लाले पड़े हैं। सिंधी ने बताया कि ये प्योर सीजनल बिजनेस है। साल में एक-दो सप्ताह नवंबर-दिसंबर। उसके बाद असली काम अप्रैल-मई में मिल जाता है। पूरे साल में सबसे ज्यादा काम अक्षय तृतीया, तुलसी विवाह (नवंबर), देव उठान, वसंत पंचमी (फरवरी) में शादी-ब्याह का थोड़ा बहुत काम होता है।
धंधा चौपट होने से जिंदगी अचानक थमी नहीं, काफी पीछे चली गई
दिल्ली के घोड़ा-बघ्घी कारोबारी कमल प्रधान ने कहा, मैं सरकार को दोष नहीं दे सकता। लेकिन कोरोना ने कहीं का नहीं छोड़ा है, यह वो सच है जो, हर किसी को निगलना पड़ेगा। कोरोना की कमर तोड़ने के लिए जिंदगी अचानक थमी नहीं, सदियों पीछे चली गई है। शादियों में लोगों की शान-ओ-शौकत में चार चांद लगाने और अच्छा बिजनेस करने कराने वाले हम सब इस सीजन में बर्बाद हो चुके हैं। करोड़ों का बिजनेस कौड़ियों का नहीं रहा।
कमाने की बात दूर रही इस लॉकडाउन में जो बुकिंग थीं वो सब भी कैंसिल हो चुकी हैं। दिल्ली घोड़ा बघ्घी एसोसिएशन पदाधिकारी अशोक आहूजा के मुताबिक, दिल्ली में एक अनुमान के मुताबिक, 5-6 लाख लोग घोड़ा-बघ्घी बिजनेस से जुड़े हैं। इनमें मालिक, खल्लासी, लेबर, शू मेकर आदि सब जुड़े हैं। सालाना औसतन 50 करोड़ से ऊपर का कारोबार सिर्फ राजधानी में घोड़ा-बघ्घी का है। जबकि एक अंदाज से 5 हजार से ज्यादा घोड़ा-घोड़ी इस कारोबार में ‘धुरी’ की मानिंद जुड़े हैं। कोरोना के कहर ने इन सबको नेस्तनाबूद कर दिया है। रास्ता कोई नजर नहीं आता।
नई दिल्ली जिला में अलग-अलग संगठन व स्वयंसेवी संगठनों की आठ टीमें राजस्थानी, बुंदेलखंडी और भोजपुरी लोकगीत प्रवासी मजदूरों के शेल्टर और कालोनी में मनोरत्नम कैंपेन से खुशियां बांट रहे हैं। प्रवासी मजदूरों के शेल्टर होम, कालोनी के टुकड़े में टीमें हाथ में हार्मोनियम और ढोलक लेकर पहुंच रहे हैं। नई दिल्ली डीएम की तनवी गर्ग ने कैंपेन की जिम्मेदारी प्रोवेशन एसडीएम डॉ. नितिन शाक्य को सौंपी है।
डॉ. नितिन ने बताया कि मनोरत्नम का मतलब है, इस उदासी में मन में खुशी पैदा करने वाला कैंपेन। ना सिर्फ लोकगीत से बुंदेलखंड, राजस्थान या बिहार के प्रवासी मजदूरों को शेल्टर होम में जोड़कर कोरोना की महामारी से बचने के लिए लॉकडाउन का पालन करने का संदेश देते हैं। लोग कालोनी, घर या शेल्टर होम में लंबे समय से लॉक हैं, ऐसे में हारमोनल चेंज होते हैं जिसमें अवसाद की स्थिति ना हो इसलिए इस तरह के कार्यक्रम से लोगों को जोड़ रहे हैं। लॉकडाउन में प्रशासन की सूचना जल्द पब्लिक तक पहुंचाने के लिए 35-40 वाट्सएप ग्रुप बनाए हैं। इसमें कुछ कंटेनमेंट जोन के ग्रुप हैं।
सेंट्रल भाजपा की सेवा रसोई के संयोजक और सांसद विनय सहस्रबुद्धे के निर्देशन में सहसंयोजक वीरेन्द्र सचदेवा पूर्वी दिल्ली में लॉकडाउन के दौरान भोजन से लेकर अन्य सामान गरीबों व जरूरतमंदो को वितरित कर रहे हैं। सचदेवा ने बताया, हमारे कार्यकर्ता पुलिसकर्मियों के सहयोग से जरूरतमंदों का पता लगाकर उन तक भोजन पंहुचाते हैं। रोज करीब 2000 लोगों को भोजन उपलब्ध कराया जाता है। उन्होंने बताया कि खाना बनाने के दौरान स्वच्छता का पालन होता है और पौष्टिकता का ध्यान रखा जाता है।
उन्होंने बताया कि केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, भाजपा नेता दुष्यंत गौतम, केंद्रीय भाजपा कार्यालय के प्रभारी महेन्द्र पांडे, विधायक जितेन्द्र महाजन से लेकर आम आदमी पार्टी के एक कद्दावर नेता भी रसोई का अवलोकन करने आ चुके हैं। दूसरी ओर दिल्ली कैंट बोर्ड की पूर्व उपाध्यक्ष व सदस्य प्रियंका चौधरी अपनी एनजीओ के मदद से रोज 500 लोगों को सुबह-शाम भोजन उपलब्ध करवा रही हैं। उन्होंने बताया कि 45 साल से ऊपर और 5-20 साल तक के बच्चे की इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए विटामिन सी की टेबलेट भोजन के साथ देते हैं।
नार्थ-वेस्ट जिले के जहांगीरपुरी इलाके में बुधवार दोपहर करीब तीन बजे सस्ता चिकन बेचने पर हुए विवाद में एक शख्स को चाकुओं से हमला कर गंभीर रुप से घायल कर दिया। वारदात के बाद आरोपी मौके से फरार हो गए। स्थानीय लोगों की सूचना पर मौके पर पहुंची पुलिस ने घायल को अस्पताल में भर्ती कराया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
मृतक की पहचान सिराज (35) के रुप में हुई है। पुलिस ने कुछ देर बाद ही एक आरोपी सालम को गिरफ्तार कर लिया है। जबकि बाकी की तलाश में छापेमारी कर रही है। सिराज परिवार के साथ जी-ब्लॉक, जहांगीरपुरी मे रहता था। मृतक के परिजनों ने बताया कि सिराज लॉकडाउन से पहले स्क्रैप का काम करता था। लॉकडाउन की वजह से काम बंद हो गया था। रुपए खत्म होने के बाद सिराज ने चिकन बेचना शुरू किया। बुधवार को काम का पहला ही दिन था। इलाके में दूसरे चिकन बेचने वालों को सस्ता चिकन बेचना नागवार लगा। सस्ता चिकन बेचने को लेकर दोनों के बीच काफी विवाद हुआ। हाथापाई के बीच आरोपी ने दुकान में रखा मीट कटने वाला चाकू उठाया और उसके एक के बाद एक कई चाकू मारे। एक चाकू सिराज के माथे में लगा था। जब लोगो ने आरोपी को पकड़ने की कोशिश की। आरोपी ने लोगो को मारने की धमकी दी और मौके पर से फरार हो गए।
कोरोना वायरस से बचाव के लिए कई संस्थाएं लोगों की मदद के लिए काम कर रही हैं। लेकिन केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की बेटी और स्पर्श गंगा की राष्ट्रीय संयोजिका आरुषि निशंक ने बॉर्डर पर तैनात सैनिकों की सुरक्षा की चिंता करते हुए खादी के कपड़े से खुद मास्क बनाए हैं। स्पर्श गंगा देश और दुनिया में साल 2008से काम कर रही है। पूरी दुनिया में साढ़े पांच लाख से ज्यादा लोग इस संस्था से जुड़े हुए हैं। स्पर्श गंगा की विभिन्न टीमों ने इन फेस मास्क को खादी के कपड़ों से खुद घर पर बनाया है।
इन्हें धोकर दोबारा प्रयोग में लाया जा सकता है। आरुषि निशंक ने कहा कि रक्षा बंधन पर प्रत्येक बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षा का धागा बांधती है और भाई सदैव बहन की रक्षा करने का प्रण लेता है। हमारे भाई तो जी जान से अपना प्रण निभा रहे हैं तो फिर हम बहनों का भी धर्म है कि हम उस कलाई को सुरक्षित करें जो सदैव हमारी रक्षा के लिए तत्पर तैयार रहती है। इसलिए हमारी टीम ने 10 हजार मास्क आर्म फोर्स क्लीनिक दिल्ली को भेजे हैं। सेना के जो डॉक्टर एवं सैनिक हमारी सुरक्षा के लिए लगातार खड़े हैं। ये मास्क उन्हें उपलब्ध कराए जाएंगे। एक बार प्रयोग में लेकर फेंके जाने वाले मास्क पर वायरस के होने से उससे और लोगों के भी कोरोना से संक्रमित होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए हाथ से बने मास्क ज्यादा उपयोगी हैं। उन्होंने कहा कि स्पर्श गंगा की टीम ने एक्वाक्राफ्ट एनजीओ के साथ मिलकर इस काम की शुरूआत की है। इससे आर्थिकी बढ़ाने के साथ ही पर्यावरण के संरक्षण एवं सवर्धन में भी सहायता मिलेगी।
अखिलेश कुमार.लॉकडाउन दिल्ली के 18,929 परिवारों के लिए कुछ खास हो गया। इनके परिवार में 25 मार्च से 24 अप्रैल के बीच नया मेहमान आया है। पूर्वी एमसीडी, उत्तरी एमसीडी और दक्षिण एमसीडी में इतने लोगों ने बच्चे के जन्म का रजिस्ट्रेशन कराया है। ये डाटा पिछले साल यानी 25 मार्च से 24 अप्रैल, 2019 के बीच 28,776 था। यानी लॉकडाउन में बच्चों के बर्थ का रजिस्ट्रेशन महज एक महीने में 9832 कम हुए हैं। सबसे बड़ी कमी साउथ एमसीडी में आई है। यहां पिछले साल एक महीने में 11,606 बच्चों का जन्म हुआ था। इस साल उसी तारीख के लॉकडाउन पीरियड में 6997 बच्चों का जन्म हुआ यानी 4609 बच्चों का जन्म उनके कार्यक्षेत्र में कम हुआ।
उत्तरी एमसीडी में 10,882 की बजाय 7265 बच्चों का जन्म हुआ। यानी 3617 बच्चों का रजिस्ट्रेशन महज एक महीने में यहां घट गया। पूर्वी एमसीडी में 6273 रजिस्ट्रेशन 2019 के एक महीने में हुए और 2020 में उसी दौरान 1606 कम 4667 बर्थ रजिस्ट्रेशन हुए।
नार्थ एमसीडी में लिंगानुपात सबसे अच्छा- प्रति हजार 927 लड़कियां
नार्थ एमसीडी की आयुक्त वर्षा जोशी कहती हैं कि यूं तो सीधे तौर पर अभी इतना बड़ा अंतर कैसे आया ये नहीं कह सकते। लेकिन बॉर्डर सीलिंग व घर में जन्म वाले बच्चे और रजिस्ट्रेशन में एक महीने से अधिक होने पर एसडीएम ऑर्डर से होने वाले रजिस्ट्रेशन की कमी को बड़ा कारण मान सकते हैं। पूर्वी एमसीडी में बर्थ रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि बर्थ का रजिस्ट्रेशन सरकारी या एमसीडी से रजिस्टर अस्पताल खुद 7 दिन में रजिस्ट्रेशन कराते हैं।
इसके अलावा जिन बच्चों का जन्म घर पर होता है, वो एक महीने में एमसीडी दफ्तर जाकर या फिर ऑनलाइन प्रक्रिया से रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। एक महीने से अधिक समय निकल जाने के बाद एसडीएम के पास आवेदन करना होता है। एसडीएम जांच के बाद ऑर्डर जारी करते हैं जिसके आधार पर बर्थ रजिस्ट्रेशन एमसीडी करता है।
परिजन कहते हैं लॉकडाउन में आई है
अरसलान अबुल फजल एन्क्लेव में रहने वाले अरसलान पाशा की बेटी का जन्म होली फैमिली अस्पताल में 2 अप्रैल को हुआ। लॉकडाउन में बच्ची के जन्म को लेकर अच्छे-बुरे पहलू पर भास्कर ने पूछा तो बोले-दोनों अनुभव रहे हैं। बच्ची का जन्म तो होना ही था, कोविड19 और लॉकडाउन तो बाद में आया है। मित्र व परिजन कहते तो हैं कि लॉकडाउन में आई है। बेटी को इंफेक्शन हो गया तो जहां लेकर जाएं, सब पहले कोविड19 का टेस्ट कराने की बात कह रहे हैं। बेटी की सर्जरी में बहुत दिक्कत झेलनी पड़ी।
नार्थ एमसीडी में लिंगानुपात सबसे अच्छा
लॉकडाउन के एक महीने में लड़कों का जन्म अधिक हुआ है। तीनों एमसीडी में 25 मार्च से 24 अप्रैल के बीच 18,929 बच्चों का बर्थ रजिस्ट्रेशन हुआ है। इसमें 9839 लड़के, 9084 लड़कियां और 6 थर्ड जेंडर के रहे हैं। लिंगानुपात की बात करें तो इस एक महीने में प्रति हजार 923 लड़कियों का जन्म हुआ है। इसमें अलग-अलग एमसीडी की बात करें तो नार्थ एमसीडी में लिंगानुपात सबसे अच्छी प्रति एक हजार लड़कों के मुकाबले 927 लड़कियों का जन्म हुआ है जबकि साउथ एमसीडी में 925 और ईस्ट एमसीडी में ये आंकड़ा 914 का रहा है।
एक्ट्रेस निमरत कौर इरफान खान के साथ फिल्म 'लंचबॉक्स' में नजर आ चुकी हैं। ऐसे में इरफान खान के निधन के बाद को-एक्टर ने उनकी कही बातों को याद करते हुए इसे इंडस्ट्री के लिए एक बड़ा नुकसान बताया है।
एक्ट्रेस ने कहा, ‘इरफान बहुत ही उम्दा इंसान थे और अपनी जड़ों से जुड़े हुए इंसान और मिडल क्लास फैमिली से ताल्लुक रखते थे। मैंने उनके साथ एक फिल्म जरूर की है लेकिन उस फिल्म में हमारे एक भी सीन साथ में नहीं है, लेकिन जब भी हम प्रमोशंस के लिए एक दूसरे के साथ जाया करते थे, मुझे उन्हें जानने का मौका मिला और खासकर तब जब कान्स फिल्म फेस्टिवल में फ़िल्म रिलीज हुई थी उस वक्त। अगर उनके सेंस ऑफ ह्यूमर की बात करे तो वो बहुत ही बेहतरीन था। लोगों की ओर उनके देखने का नजरिया काफी अलग था और उनकी दुनिया को लेकर एक अलग ही सोच थी और वही उनके काम में भी झलकता था बहुत ज्यादा’।
आगे उन्होंने बताया, ‘मुझे याद है जब कान्स फिल्म फेस्टिवल में लंच बॉक्स रिलीज हुई थी जब फिल्म का प्रीमियर था उसके बाद आसपास बहुत शोर था फ़िल्म लोगो को बहुत पसंद आयी थी। सराह रहे थे फ़िल्म को और जब एकाएक ही सारी चीज आपके सामने आए जो आपने उम्मीद ना की हो तो आप थोड़े से डर जाते हैं। मुझे समझ नही आ रहा था कि क्या करूँ जिसके बाद मैंने इरफान से पूछा कि आप क्या करने वाले है इस परिस्थिति से निकलने के लिए। उस वक्त इरफान ने मुझे कहा था कि देखो बहुत ही वक्त अपने हक काआता है और जब आए तो उसे पूरी तरह जी लो क्योंकि पता नहीं क्या अब वह वापस कब आएगा। इरफान ने कहा था कि जब भी हमारे साथ अच्छा हो तो उसे एक तोहफे की तरह लो और खुशियां मनाओ ऐसा समझो कि कोई आपकी स्ट्रगल को ब्रेक देने आया है। भगवान ने एक गिफ्ट भेजा है आपके लिए तो उस वक्त उसे आप पूरी तरीके से इंजॉय कीजिए। बहुत ही बेहतरीन इंसान थे ऐसा बहुत ही कम होता है कि किसी एक एक्टर के जाने से सभी को एक ऐसा एहसास होता है जैसे कि उसने कुछ खो दिया है चाहे वह उस एक्टर को खुद पर्सनली जाने या ना जाने और यह मैं देख रही हूं कि यह इरफान के जाने से वह है और यह बहुत ही बड़ा लॉस है इंडस्ट्री के लिए जिसे कभी भी भरा नहीं जा सकता है’।
एक्टर इरफान खान ने फिल्मों में अपनी पहचान बनाने से पहले कई टेलीविजन शो में बेहतरीन किरदार निभाए हैं। इरफानके निधन पर 'चाणक्य' सीरियल के डायरेक्टर और राइटर डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने उनका एक किस्सा याद किया है। उन्होंने बताया है कि शो के आखिरी दिन इरफान घंटो सेट पर बैठे हुए थे।
चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने इरफान को याद करते हुए बताया, ‘1990 में इरफ़ान खान से मुलाकात हुई थी। उस वक्त में चाणक्य सीरियल की तैयारी कर रहा था। इरफ़ान का पहला काम मैंने 'भारत एक खोज' में देखा था जिसमे उनका काम लाजवाब था। उनके एक मित्र हैं इशांत त्रिवेदी जो की नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा के उनके बैच मेट भी थे। मैंने उनसे इरफ़ान के बारे में पूछा और उन्हें अपनी शो में लेने की बात रखी।जब 'भारत एक खोज' की शूटिंग ख़त्म हुई तब मेरी मुलाकात इरफ़ान से हुई, उस वक्त में 'चाणक्य' के पायलट की तैयारी कर रहा था’।
आगे उन्होंने कहा, ‘मुझे अब भी याद हैं जिस दिन इरफ़ान का आख़िरी दिन था 'चाणक्य' के सेट पर वो शूटिंग ख़त्म होने के बावजूद सेट से गए नहीं थे। मैं उस वक्त एक खाट पर बैठकर कुछ लिख रहा था और मैंने देखा की इरफ़ान घंटों तक सेट पर मंडरा रहे हैं। शुरूआती में मुझे कुछ समझ नहीं आया लेकिन कुछ देर बाद मैंने उसे कहाँ की जाओ अब अपने घर। तुम्हारा काम हो चुका है। हर बार में ये बात कहता और हर बार वो बस यही कहता की हाँ, हाँ, मैं जा हूँ। लेकिन वो जाता नहीं था। दिन ख़त्म हुआ तब इरफ़ान मेरे बाजु में आकर खड़े हो गए। मैंने उनसे पूछा की क्या बात हैं, जा क्यों नहीं रहे हो? उस वक्त उनकी आँखों में आंसू थे और वे सिर्फ एक 'थैंक यू' बोलने के लिए इंतज़ार कर रहे थे। वो अपने इमोशंस में इतने थे कि सिर्फ 'थैंक यू' बोलने के लिए हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। कई घंटे बिता दिए थे। ऐसे लोग कहां हैं जो अपने डायरेक्टर को धन्यवाद दे’।
उनके जैसा एक्टर अब मिलना बहुत मुश्किल हैं
डायरेक्टर ने उनकी कास्टिंग पर बात करते हुए बताया, 'चाणक्य के लिए इरफान के दोस्त इशांत त्रिवेदी ने गारंटी ली थी। उनके काम की तारीफ़ हर कोई करता था। वही तारीफ़ सुनकर मैंने इस शो का प्रस्ताव रखा। तक़रीबन एक साल तक हमने साथ में काम किया और यकीन मानिये उनके जैसा एक्टर अब मिलना बहुत मुश्किल हैं’।