नई दिल्ली | सुप्रीम काेर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसए बाेबडे ने कहा है कि टेक्नाेलाॅजी के बढ़ते इस्तेमाल ने सामूहिक डेटा संग्रह अाैर व्यक्ति के िनजता के अधिकार काे लेकर भी िचंता बढ़ाई है। उन्हाेंने कहा कि िवभिन्न पर्यावरणीय मुद्दाें काे लेकर भी कानूनाें की एकल प्रणाली हाेनी चाहिए। अंतरराष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन के दूसरे अाैर अंितम िदन रविवार काे “न्यायपालिका अाैर बदलती दुनिया’ िवषय पर बाेबडे ने कहा कि वैश्वीकरण के दाे पहलुअाें ने न्यायपालिका के सामने सबसे बड़ी चुनाैती खड़ी की है। ये हैं बढ़ती सप्लाई चेन की बढ़ती संख्या अाैर सूचना प्राैद्याेगिकी का िवस्तार।बोबडे ने कहा, हम सबको न्याय देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
लैंगिक समानता के लिए व्यापक उपाय करना बहुत जरूरी
सीजेअाई बाेबडे ने कहा कि न्यायपालिका संवैधानिक मूल्यों की संरक्षक है। कानून के शासन की प्रतिबद्धता के साथ जनवादी ताकतों की सेवा करती है। महिलाओं को न्यायपालिका में शामिल करना न्यायपालिका के दायित्वों में अंतर्निहित है। उन्होंने कहा, “हम ‘न्यायपालिका अाैर लैंगिक न्याय’ पर सम्मेलन में आयोजित सत्र के दौरान इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि लैंगिक समानता के लिए व्यापक उपाय किए जाने की आवश्यकता है। सीजेअाई ने कहा कि भारतीय न्यायपालिका पर देश के एक अरब 30 करोड़ लोगों के अधिकारों की रक्षा का दायित्व है। देश में करीब साढ़े सत्रह हजार अदालतें हैं।एक वैसे देश जहां 22 भाषाएं और कई हजार बोलियां बोली जाती हैं। शीर्ष अदालत ने फैसलों का अनुवाद 9 भाषाओं में कराने का निर्णय किया है।
राष्ट्रपति बाेले-ऐतिहासिक फैसलों से संवैधानिक ढांचा मजबूत:राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने न्यायपालिका की प्रगतिवादी सोच की प्रशंसा करते हुए कहा कि सुप्रीम काेर्ट के ऐतिहासिक फैसलों ने देश के कानूनी और संवैधानिक ढांचे को मजबूती दी है। बड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों से कानून का राज स्थापित हुआ। शीर्ष अदालत हमेशा से सक्रिय एवं प्रगतिशील रही है। उन्होंने कहा कि भारत की भाषायी विविधता को ध्यान में रखते हुए विभिन्न भाषाओं में फैसले उपलब्ध कराने का उच्चतम न्यायालय का प्रयास असाधारण है।
राष्ट्रपति ने कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न की रोकथाम के लिए लागू किए गए दो दशक पुराने विशाखा दिशा-निर्देशों का हवाला देते हुए कहा कि इसे यदि एक उदाहरण के तौर पर लें तो लैंगिक न्याय के लक्ष्य को हासिल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट हमेशा से सक्रिय और प्रगतिशील रहा है। कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए दो दशक पहले दिशा-निर्देश जारी करने से लेकर सेना में महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने के लिए इस महीने निर्देश जारी करने तक सुप्रीम कोर्ट ने प्रगतिशील सामाजिक परिवर्तन की अगुवाई की है।
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