(पवन कुमार).कोरोना मरीजों के इलाज में जुटे हेल्थ वर्कर्स और डॉक्टर्स को बीमारी से बचाने के लिए मलेरिया, ऑर्थराइटिस और ल्यूपस बीमारी में कारगर हाइड्रोक्सी-क्लोरोक्वीन दवा ने उम्मीद बढ़ा दी है। इसी वजह से दुनिया के कई देशों ने भारत से इस दवा की मांग की है। हालांकि भारत भी इस दवा का रॉ मेटेरियल (एपीआई) तैयार करने में इस्तेमाल होने वाले की स्टार्टिंग मेटेरियल (केएसएम) के लिए करीब-करीब चीन पर निर्भर है। भारत में मुख्य रूप से जाइडस, इप्का और मंगलम फॉर्मास्यूटिकल कंपनियां यह दवा बनाती है। सेंट्रल स्टैंडर्ड ड्रग्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (सीडीएससीओ) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पहले यह दवा सिर्फ मलेरिया के मरीजों के इलाज मेें इस्तेमाल होती थी, लेकिन अब रुमेटाइड ऑर्थराइटिस और ल्यूपस के मरीजों को भी यह दवा दी जाती है, इसलिए इसकी खपत पहले की तुलना में बहुत बढ़ गई है।
देश में इस दवा की खपत हर माह 2.5 करोड़ टैबलेट
भारत में हर माह 40 मीट्रिक टन हाइड्रोक्सी-क्लोरोक्वीन दवा की एपीआई की क्षमता है। इससे 20 करोड़ टैबलेट बन सकती है। देश में इसकी खपत ढाई करोड़ टैबलेट प्रति माह है। स्वास्थ्य मंत्रालय और राज्यों ने 14.7 करोड़ टैबलेट का ऑर्डर दिया है। एक अधिकारी ने बताया कि चीन से अब एपीआई और केएसएम आने लगा है इसलिए किल्लत नहीं होगी।
यह दवा ह्यूमन सेल में बदलाव लाती है
एम्स की रूमेटोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ.उमा कुमार ने बताया कि हाइड्रोक्सी-क्लोरोक्वीन ह्यूमन सेल्स में बदलाव लाती है जिसकी वजह से वायरस शरीर के अंदर जाकर फैल नहीं पाता। यह दवा ऑटो इम्यून डिसीज में कारगर है। देश की करीब 1% आबादी ऑर्थराइटिस से पीड़ित है, इसमें 30% मरीजों को यह दवा दी जाती है। मलेरिया में तो यह दवा पहले से ही कारगर है।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2XdQgHM
via IFTTT
No comments:
Post a Comment