(अमित कुमार निरंजन)देश में कोराेना संक्रमण का बढ़ता खतरा और लॉकडाउन के दौर में हजारों लोग बतौर वॉलंटियर अपने आसपास संकट में घिरे लोगों की बिना स्वार्थ मदद कर रहे हैं। बीते कुछ ही दिनों में सामाजिक संगठनों के ऑनलाइन प्लेटफाॅर्म्स पर सैकड़ों लोगों ने अपना नाम दर्ज कराया है, जो उन स्थानों पर भी लोगों की मदद कर रहे हैं, जहां प्रशासन और स्वास्थ्य अमले के अलावा कोई और जाने की हिम्मत नहीं कर रहा है। पढ़िए ऐसे ही कुछ लोगों की कहानियां-
नोएडा: घर में बंद बुजुर्ग दंपती की सेवा मां-बाप की तरह
कोरोना के हाॅट स्पाट नाेएडा के सुभोजित भट्टाचार्य एचआर हेड हैं। नोएडा में ही रह रहे 70 साल के एसके दास डाइबिटिक हैं और अकेले हैं। उन्होंने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर मदद की गुहार लगाई, तब सुभोजित को उनके बारे में पता चला। अब सुभोजित राेज उन्हें दूध-फल, दवा, राशन जैसी जरूरी चीजें पहुंचा रहे हैं। वे कहते हैं, उनके माता-पिता कोलकाता में अकेले हैं। मैं यहां बुजुर्गों की मदद कर रहा हूं, शायद कोई वहां मेरे माता-पिता को भी मदद पहुंचाएगा।
मुंबई: जोखिम उठाकर रोज 300 लोगों को खाने के पैकेट बांटते हैं
मुंबई के स्वतंत्र लेखक 23 साल के नीस ग्वांदे ऑनलाइन प्लेटफाॅर्म से जुड़कर इन दिनों वर्ली, कोलिवाड़ा जैसे हॉटस्पॉट में लोगों को भोजन के पैकेट पहुंचा रहे हैं। संक्रमण की वजह से सील इन इलाकों में वे रोज 300 खाने के पैकेट लेकर जा रहे हैं। वे इसे एक स्थान पर ले जाकर रख देते हैं। इनके जाने के बाद लोग एक-एक कर ये पैकेट ले जाते हैं। अनीस बताते हैं कि संक्रमित क्षेत्र में जाना जोखिम भरा है, लेकिन इस समय देश के लिए जोखिम उठाना जरूरी है।

हैदराबाद: रेस्त्रां के किचन में बना रहे 2000 लोगों का खाना
शुभद्रा रानी और उनके पति श्रीनिवास एक आईटी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। दाेनों ने कुछ लोगों को भोजन देने से शुरुआत की थी। लेकिन एक दिन घर के बाहर सैकड़ों मजदूर भाेजन की आस में जमा हो गए। इतने लोगों का खाना घर में बनना संभव नहीं था तो शुभद्रा रानी ने पास में ही एक रेस्त्रां का किचन खुलवाया और वहां से लोगों के लिए खाना बनाना शुरू किया। बाद में दोस्त और उनके पड़ोसी भी जुड़े। वे रोज दो हजार लोगों का खाना बनाते हैं।

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